"..खुद की तलाश कर
क्यूँ भटक रहा है राहो मे,
शलो को भर ले निगाहों में।।
कुछ पाने की तो चाह बना,
उम्मीदो से राह बना।।
मंजिल मे जो दरिया मिले,
तू कश्ती बन उसे तैर जा ।।
कि आँसमा भी झुक जाए कदमो मे,
तू हौसलो को इतना बढ़ा।।
कुछ इस तरह खामोशी से,
तू अपनी तरक्की का आगाज़ कर ।।
होकर इस जहाँ से बेख़बर,
तू खुद की तलाश कर ।।

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